बल्ब का आविष्कार किसने कब और कैसे किया था | Who Invented Bulb in Hindi

Bulb ki khoj Kisne ki: पुराने समय में रात के समय पूरी दुनिया अंधकार में खो जाती थी। prakash करने के लिए सिर्फ तेल के दिए, मशाल या आग ही थी। इसके अलावा अंधकार से छुटकारा पाने का कोई साधन नहीं था। बिना प्रकाश के रात्री में कोई भी काम नहीं हो पाता था।

लेकिन आज के समय में Bulb के प्रकाश ने इस समस्या को दूर किया। बल्ब ने ही आज आबादी वाले क्षेत्र में रात्री के अंधकार को दूर किया है। छोटे से लेकर बड़े शहर में Bulb ki Roshni ने ही रात को दिन में बदला है। हालांकि आज बाजार में cfl और Led का बोलबाला है।

लेकिन इनमें Bulb Technology Ka Use किया जाता है। बल्ब के प्रकाश ने आज बहुत सी समस्याओं को दूर करने में अपना योगदान दिया है। क्योंकि पहले कई काम रोशनी की कमी के कारण रात में नहीं हो पाते थे। लेकिन आज बल्ब के प्रकाश ने रात और दिन को एक कर दिया है।

लेकिन क्या आपको पता है, बल्ब का आविष्कार किसने किया था? और सबसे पहले इसके बारे में किसे विचार आया था? तो आइए हम आपको इन सवालों के जवाब देते हैं। सबसे पहले जानते हैं की Bulb क्या है?

बल्ब क्या होता है|Bulb in Hindi

Bulb एक खोखला काँच का गोला होता है। जो अंदर से निर्वात की तरह कार्य करता है। इस गोले में एक टंगस्टन का तंतु लगा होता है, जब इस तंतु में बिजली प्रवाहित की जाती है तो यह कुछ ही पल में गर्म हो जाता है। अंदर से गर्म होने के बाद यह तंतु प्रकाश उत्पन्न करता है।

Bulb में बिजली प्रवाहित करने के लिए इसमें दो तार लगे होते हैं। इसके अलावा बड़े बल्ब बनाने में कम दाब पर आर्गन, क्रिपटोन, नाइट्रोजन, जीनोन और हाइड्रोजन में से कोई एक गैस भरी जाती है। क्रिपटोन इन सबमें से सबसे उत्तम गैस है, क्योंकि इसका उपयोग छोटे बल्ब बनाने में भी किया जाता है।

गर्म होने के कारण प्रकाश उत्पन्न करने की प्रक्रिया को तापदीप्ति कहा जाता है। इसलिए ऐसे बल्ब को तापदीप्ति बल्ब भी कहा जाता है। इसको काँच के गोले में इसलिए रखा जाता है ताकि ऑक्सीज़न इसके तंतु को नष्ट न कर सके। यह बल्ब 1.5 वोल्ट से लेकर 300 वोल्ट तक की बिजली पर प्रकाश उत्पन्न कर सकते हैं।

इसके अलावा आपको बाजार में 1 वाट से लेकर हजारों वाट तक के बल्ब आसानी से मिल जाते हैं। तापदीप्ति बल्ब बनाने में बहुत कम खर्चा आता है, तथा यह AC और DC दोनों करंट पर आसानी से चल सकते हैं। आज से 20 वर्ष पहले आमतौर पर घरों में इन्हीं बल्बों का उपयोग किया जाता था।

लेकिन ताप्तदीपति बल्ब बिजली की बहुत खपत करते हैं, इसलिए आज के समय में इनका उपयोग बहुत कम हो गया है। आज के समय में LED बल्ब सबसे उत्तम श्रेणी का बल्ब है। जो कम बिजली खपत करने के साथ ज्यादा रोशनी उत्पन्न करता है।

बल्ब का इतिहास|History of Bulb in Hindi 

Bulb ka itihas आज से तकरीबन 150 वर्ष पुराना है। इसका इतिहास प्रतिस्पर्धा, विफलताओं और उपलब्धियों से भरा है। मानव इतिहास में आग के आविष्कार के बाद बल्ब के आविष्कार को सबसे बड़ी उपलब्धि माना जा सकता है।

आज घरों में उपयोग होने वाला यह छोटा सा बल्ब कई वर्षों की कड़ी मेहनत का नतीजा है।

18वीं शताब्दी तक लोग अपने घरों को प्रकाशित करने के लिए मोमबतियों और ऑइल लैंप का उपयोग करते थे। लेकिन इनसे बहुत ही कम रोशनी उत्पन्न होती थी तथा ये ज्यादा धुआँ उत्पन्न करते थे। अधिक धुआँ उत्पन्न करने के कारण यह अत्यधिक खतरनाक थे।

लेकिन 19वीं सदी तक आते-आते अधिकांश घरों में इन तेल लैंप की जगह गैस लैंप लाइटिंग ने ले ली। क्योंकि गैस लैंप अधिक और लंबे समय तक रोशनी करने में सक्षम थे।

इसके अलावा इनकी लागत भी तेल लैंप और मोमबतियों से लगभग 75% कम थी। धीरे-धीरे गैस लैंप लाइटिंग ने हर घर, गली और व्यवसाय क्षेत्र में अपनी जगह बना ली।

1802 में Sir Humphry Davy (English Physician- London) ने सबसे पहले इलैक्ट्रिक लाइट का आविष्कार किया। इसके लिए उन्होंने एक प्लैटिनम स्ट्रिप में करंट प्रवाहित किया।

हालांकि इसकी रोशनी ज्यादा समय तक नहीं रही। परंतु यह लाइट बल्ब के इतिहास का शुरुआती कदम था। इस आविष्कार ने ही वैज्ञानिकों के मन में बल्ब के आविष्कार का जुनून पैदा किया।

साल 1809 में Davy ने एक कार्बन आर्क लैंप को बनाया, जो एक बैटरी के साथ जुड़ा हुआ था। बैटरी और लैंप एक दूसरे से दो तारों के माध्यम से जुड़े हुए थे।

Davy ने जब इसे लोगों के सामने प्रदर्शित किया तो इस लैंप ने तेज प्रकाश उत्पन्न किया। लेकिन इसके साथ ही इसने भारी मात्रा में करंट का सेवन भी किया जिससे बैटरी कुछ ही समय में डिस्चार्ज हो गई।

अधिक करंट का खपत करने के कारण Davy के आर्क लैंप को लोगों ने स्वीकार नहीं किया। लेकिन कुछ ही समय बाद लोग बैटरी की जगह इलैक्ट्रिक जेनरेटर का उपयोग करने लगे। इस तरह अगले कुछ दशकों तक लगभग हर जगह आर्क लैंपों का बोलबाला था।

इसके बाद 1841 में Frederick de Moleyns (England) ने एक तापदीप्ति लैंप को बनाया, जो गर्म होने के बाद प्रकाश उत्पन्न करता था। 

इस लैंप में काँच के बल्ब का उपयोग किया हुआ था, जो पूरी तरह से निर्वात में था। इसके अलावा उसमें दो प्लैटिनम के तंतु लगे हुए थे, जिनके मध्य चारकोल के पाउडर का लेप किया हुआ था।

लेकिन यह लैंप ज्यादा कामयाब नहीं हो पाया। क्योंकि इसकी खराब बनावट ने इस जल्द ही अंदर से काला कर दिया। जिससे रोशनी का उत्सर्जन सही तरीके से नहीं हो पाया। इसके अलावा प्लैटिनम के तंतु भी काफी महंगे और दुर्लभ थे।

साल 1865 में जर्मन रसायनज्ञ Hermann Sprengel ने एक ऐसे वैक्युम पंप का आविष्कार किया, जो किसी भी वैक्युम से हवा को बाहर निकालने और दाब कम रखने में सहायक था।

यह आविष्कार उनके लिए वरदान साबित हुआ जो ताप्तदीपति लैंप के निर्वात में हवा की समस्याओं का सामना कर रहे थे। इस पंप ने लैंप में से अनावश्यक हवा को बाहर निकालने और अंदर के दाब को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1874 में Henry Woodward और Mathew Evans ने एक ऐसे तापदीप्ति बल्ब को बनाया जिसमें कार्बन के 2 तंतु लगे हुए थे। इस बल्ब ने बहुत अच्छे तरीके से काम किया। परंतु इसकी बाजार में ज्यादा बिक्री नहीं हो पाई, इस कारण इन्होंने अपने इस आविष्कार को 1879 में थॉमस एडिसन को बेच दिया।

1875 में एक रूसी इलैक्ट्रिकल इंजीनियर Nikolayevich Yablochkov ने आर्क लैंप बनाया। जिसका नाम “Yablochkov Candle” रखा गया। इसका उपयोग बैटरी के जीवनकाल को लंबा करने के लिए किया गया। जिसमें दो कार्बन की छड़ें लगी हुई थी। यह काफी हद तक एक कामयाब आविष्कार था।

यह लैंप इतने प्रभावशाली थे कि कुछ ही समय में इन्हें USA और यूरोप की सड़कों पर रोशनी के लिए लगाया गया। हालांकि यह लैंप तीव्र चमक पैदा करते थे, इस कारण यह खुले क्षेत्र में रोशनी करने के लिए आदर्श थे। लेकिन अंदर की बंद जगहों के लिए इनका उपयोग करना उपयुक्त नहीं था।

इसलिए बंद जगहों पर रोशनी की व्यवस्था करने के लिए 1880 के दशक में कई आविष्कारक तापदीप्ति लैंप के साथ प्रयोग करने लगे। जो कम ख़र्चीले और ज्यादा उपयोगी हो। इससे पहले बनाए गए आर्क लैंप का उपयोग सिर्फ बड़े स्तर पर होता था। लेकिन घरेलू और कम स्तर पर उपयोग होने वाले बल्ब की अभी तक खोज बाकी थी।

बल्ब का आविष्कार किसने कब और कैसे किया था|Who Invented Bulb in Hindi

अब धीरे-धीरे बल्ब बनाने में काफी सुधार होते गए। सबसे पहले तेल के लैंप का प्रचलन हुआ, उसके बाद गैस के लैंपों का समय आया। लेकिन इनमें भी काफी खामियाँ थी, इस कारण लाइट लैंप की खोज की जाने लगी। जिसके बाद वो इसमें कामयाब भी हुए, लेकिन उनमें भी काफी बदलाव हुए। जिससे भविष्य में जाकर आज के आधुनिक बल्ब का आविष्कार हुआ।

पहले तापदीप्ति बल्ब के आविष्कार का श्रेय Thomas Alva Edison को दिया जाता है। इन्होंने बहुत सारे प्रयासों के बाद बल्ब का आविष्कार किया। एडिसन ने 10,000 विफल प्रयासों के बाद सफल तापदीप्ति बल्ब का आविष्कार किया था।

पहले तापदीप्ति बल्ब में कार्बन के तंतु को इलेक्ट्रिसिटी से गर्म किया गया। इसको तब तक गर्म किया गया जब तक कि उसने रोशनी पैदा नहीं की।

Edison से पहले बनाए गए बल्बों में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा था, जैस कि खराब वैक्युम बनावट, महंगे तंतु, बल्ब का अंदर से काला होना आदि। लेकिन इन्हीं बल्बों ने तापदीप्ति बल्ब के विकास में अपना अहम योगदान दिया।

लेकिन एडीसन का बल्ब हर मोर्चे पर पूरी तरह से सक्षम था। एडिसन पहले व्यक्ति नहीं थे जो तापदीप्ती बल्ब बनाने में प्रयोग कर रहे थे। इससे पहले अनगिनत रसायनज्ञ, भौतिक विज्ञानी और आविष्कारक ने भी एडीसन के आविष्कार में अपना अहम योगदान दिया था।

1878 में Edison ने एक घोषणा की कि वो एक ऐसी तापदीप्ति रोशनी का विकास करेंगे जो अधिक सुरक्षित, सस्ती और विश्वसनीय हो। जिसके लिए उन्हें सिर्फ 6 महीनों का वक्त लगेगा और यह गैस लाइटिंग से अधिक उत्तम होगा। 

उस समय गैस लाइटिंग का प्रचलन सबसे अधिक था। इसलिए एडीसन की इस घोषणा से गैस कंपनियों के शेयर में भारी गिरावट आई।

इस समय तक एडीसन अनेक आविष्कार कर चुके थे इस कारण उनकी वित्तीय स्थिती अच्छी थी। Edison ने अपनी घोषणा को पूरा करने के लिए एक 14 इंजीनियर की टीम का गठन किया। जिसमें अमेरिकन गणितज्ञ Francis Upton, Charles Batchelor और स्विस में जन्में John Kruesi जैसे उस समय के प्रतिभाशाली इंजीनियर थे।

एडिसन और उनकी टीम ने प्लैटिनम के तंतु के साथ प्रयोग शुरू किया। तंतु के अधिक गर्म होने की समस्या को दूर करने के लिए उन्होंने एक ऐसी प्रणाली बनाई, जिसमें करंट फ़िलामेंट से रुक-रुक कर आता था। लेकिन ऐसा करने से बल्ब कभी जलता और कभी बुझ जाता था।

1879 में एडिसन और उनकी टीम ने पाया की अधिक विद्युत प्रतिरोध पर एक पतला तंतु अधिक कामयाब है। इसका मतलब यह था कि तंतु को प्रकाशित करने के लिए कम करंट (धारा) और कम तांबे के तारों की आवश्यकता हैं। 

एडिसन ने इसके अलावा Baywood, Boxwood, Cedar, Cotton, Hickory और Flax से बने तंतुओं के साथ भी प्रयोग किया।

इस तरह से एडिसन और उनकी टीम दिन-रात मेहनत कर रही थी। एक दिन उनकी मेहनत रंग भी लाई। 1880 में उन्होंने कार्बन से लेपित बांस के तंतु के साथ प्रयोग किया, जो तकरीबन 1200 घंटे तक जला।

यह अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। इस तरह से बल्ब का आविष्कार एडिसन और उनकी टीम के हाथों से हुआ। इस प्रयोग के बाद एडिसन का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया।

इसी वर्ष एडिसन को अमेरिका से तापदीप्ति बल्ब बनाने का लाईसेंस प्राप्त हुआ। एडिसन की कंपनी “एडिसन इलेक्ट्रिक लाइट कंपनी” ने प्रचुर मात्रा में इन नए बल्बों का प्रचार-प्रसार किया। अगले 10 वर्षों तक बांस के बने यह तंतु तापदीप्ति बल्ब में उपयोग होते रहे।

बल्ब के आविष्कार में दुविधा

इसी समय के दौरान एक अँग्रेजी रसायनज्ञ और भौतिक विज्ञानी Sir Joseph Wilson Swan एक ऐसे ही बल्ब बनाने पर काम कर रहे थे। जो गर्म होकर प्रकाश उत्पन्न करे, इसके लिए वो कार्बन के बने तंतुओं के साथ प्रयोग कर रहे थे।

स्वान पिछले तीस वर्षों से इस पर काम कर रहे थे, लेकिन अन्य आविष्कारकों की तरह इन्हें भी वैक्युम और बिजली की समस्या का सामना करना पड़ रहा था।

लेकिन 1878 में उन्होंने दावा किया कि वो एक तापदीप्ति लैंप बनाने में कामयाब हो गए हैं। इसके लिए उन्हें UK गवर्नमेंट से लाईसेंस भी प्राप्त हुआ है।

फरवरी 1879 में स्वान ने एक और लैंप बनाया जिसमें प्लैटिनम तार, हवा हटाने के लिए यंत्र, प्रकाश उत्सर्जक कार्बन छड़ें शामिल थी। लेकिन यह लैंप व्यावहारिक उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं था। 

क्योंकि कार्बन की छड़ों में कम प्रतिरोध होने के कारण लैंप को प्रकाश उत्सर्जित करने के लिए ज्यादा करंट की आवश्यकता पड़ी।

जब लैंप में करंट प्रवाहित किया गया तो छड़ों ने अत्यधिक मात्रा में गैसों को छोड़ा। जिससे लैंप के अंदर का भाग काला हो गया और प्रकाश के उत्पादन में अवरोध पैदा होने लगा। लेकिन स्वान ने अपने बनाए लैंप में सुधार किए और 1881 में अपनी खुद की कंपनी “The Swan Electric Light Company” की स्थापना की।

इस तरह से स्वान ने भी एडिसन की तरह बल्ब के आविष्कार में अपना अहम योगदान दिया। लेकिन एडिसन ने अपना नाम बल्ब के आविष्कार के साथ जोड़ लिया। इसके बाद स्वान ने एडिसन की कंपनी पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया जिसमें उन्हें कामयाबी भी मिली।

1883 में न चाहते हुए भी एडिसन ने स्वान की कंपनी “The Swan Electric Light Company” का “Edison Electric Light Company, Ltd.” में विलय किया।

विलय के बाद में कंपनी का नाम “Edison and Swan United Electric Light Company, Ltd.” रखा गया। लेकिन एडिसन ने कुछ ही समय बाद स्वान को कंपनी से बाहर निकाल दिया।

इस तरह से आज भी यह सबसे बड़ी दुविधा है कि बल्ब के आविष्कार का श्रेय किसे दिया जाए। हालांकि इतिहास के पन्नों में एडिसन का नाम दर्ज हो चुका है। लेकिन स्वान का योगदान भी कभी नहीं भुलाया जा सकता, संसाधनों के अभाव में इनका नाम कभी किसी के सामने नहीं आया।

आधुनिक बल्ब की रूपरेखा|Modern bulb features in Hindi

एडिसन के द्वारा बनाया गया बल्ब अगले कई दशकों तक प्रभावशाली रहा। लेकिन 1911 में William D. Coolidge (अमेरिकी भौतिक विज्ञानी ने टंगस्टन के तंतुओं का निर्माण किया। जिन्होंने कार्बन तंतुओं की तुलना में लंबे समय तक और चमकीले प्रकाश का उत्पादन किया।

1913 में अमेरिकी रसायनज्ञ और भौतिक विज्ञानी Irving Langmuir ने नाइट्रोजन गैस को बल्ब में प्रवाहित किया। उन्होंने पाया कि नाइट्रोजन ने टंगस्टन के तंतुओं को अधिक समय तक संरक्षित रखा। यह प्रयोग बल्ब में गैस भरने का सबसे बड़ा प्रयोग था और इसने बल्ब के तंतु को सुरक्षित बना दिया।

1925 में Marvin Pipkin (अमेरिकी रसायनज्ञ) ने एक ऐसे बल्ब को विकसित किया जिसमें सिलिका कोटिंग प्रणाली का उपयोग किया हुआ था। इस प्रणाली ने प्रकाश को फैलाने, तीव्रता को कम करने और प्रकाश के उत्पादन को कम-ज्यादा करने में मदद की।

साल 1956 में हैलोजन लाइट बल्ब का आविष्कार हुआ। इन लाइट बल्बों में नाइट्रोजन की जगह हैलोजन गैस को भरा गया। यह प्रयोग काफी हद तक सफल हुआ क्योंकि हैलोजन बल्ब ने औसतन 1500 घंटों तक रोशनी पैदा की। इसके अलावा इसने अन्य बल्बों की तुलना में 15% कम ऊर्जा की खपत की।

अब तक के बनाए गए सभी बल्ब अपनी ऊर्जा का 10% ही उपयोग कर पाते थे। यानी बल्ब में प्रवाहित की गई ऊर्जा से सिर्फ 10% ऊर्जा की ही रोशनी पैदा होती थी। बाकी 90% ऊर्जा गर्मी के रूप में निष्काषित हो जाती थी। इस तरह से अधिक ऊर्जा का खपत होता था।

1976 में एक इंजीनियर Edward E. Hammer ने अधिक ऊर्जा की खपत की समस्या को दूर करने के लिए एक प्रयोग किया। इसके लिए उन्होंने एक फ़्लोरोसेंट नली को सर्पीले आकार में झुका दिया। जिससे पहली Compact Fluorescent Light Bulb (CFL) का विकास हुआ।

Hammer ने इन बल्बों का उत्पादन नहीं किया। क्योंकि उस समय इनको बनाने वाली मशीनें काफी महंगी थी। लेकिन दुर्भाग्यवश इनका यह डिज़ाइन चोरी हो गया। इसके तुरंत बाद ही अन्य कंपनियों ने इस डिज़ाइन से बड़ी मात्रा में CFL का उत्पादन किया।

शुरुआत में बनाए गए CFL काफी भारी और महंगी थी। लेकिन यह तापदीप्ति बल्बों की तुलना में 75% कम ऊर्जा की खपत करते थी। तथा यह तकरीबन 10,000 घंटों तक जलने में सक्षम थी।

लेकिन यह उतने कारगर साबित नहीं हो पाई। हालांकि वक्त के साथ CFL में काफी सुधार होते गए। इसी क्रम में साल 2000 में पहला LED बल्ब बाजार में आया। जो आज हमारे घरों को रोशन कर रहा हैं।

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