जैसा की हम सभी जानते हैं की तिरुमाला की पहाडीयों में स्थित तिरुपति बालाजी का मंदिर दुनिया का सबसे अमीर मंदिर है, या यू कहें की तिरुपति बालाजी सबसे अमीर भगवान हैं. रोजाना करीब 50 हज़ार से 1 लाख भक्त भगवान के दर्शन करने, लम्बी कतारो में लगकर, कई दिनों इंतज़ार करके अपने प्रभु का दर्शन कर लाभान्वित होते हैं, परंतु क्या आपने सोचा है या आपको पता है की आखिर तिरुपति बालाजी पर इतना चढावा क्यू चढ़ता है..? वैसे तो इस रहस्य के पीछे कई कहानिया प्रचलित हैं, परंतु हम बताते हैं आपको सबसे ज़्यादा प्रचलित पौराणिक कथा के बारे में.
एक बार की बात है माता लक्ष्मी, श्रीहरि विष्णु से किसी कारण बहुत ज़्यादा रूठ कर, बैकुण्ठ और भगवान विष्णु दोनों का त्याग कर पृथ्वी लोक पर आ गयी थीं. पहले तो भगवान ने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की परंतु जब वह नहीं मानी तो भगवान भी हठ कर के बैकुण्ठ चलें गए.
एक सच्चे भक्त को चाहिए था पैसा,
कुछ समय बाद श्रीहरि का एक सच्चा ब्राह्मण भक्त उनके पास रोता हुआ आया और उसने भगवान से कहा की उसे कुछ पैसों की जरूरत है क्योकि उसपर चोरी का जूठा आरोप लगा है, परंतु सारे सबूत उसके खिलाफ होने के कारण अब उसे सारा पैसा भरना पड़ेगा. वह एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण था, उसका गुजारा भी बहुत मुश्किल से ही हो पाता था, अतः उसने श्रीहरि से कहा की अगर आज वह पैसा देने में नाकामयाब रहा तो वह आत्मदाह कर लेगा. हमारे श्रीहरि तो कहलाते ही हैं भक्तवत्सल भगवान तो भला वो अपने भक्त का अहित कैसे होने दे सकते थे.
एक सच्चे भक्त को चाहिए था पैसा,
कुछ समय बाद श्रीहरि का एक सच्चा ब्राह्मण भक्त उनके पास रोता हुआ आया और उसने भगवान से कहा की उसे कुछ पैसों की जरूरत है क्योकि उसपर चोरी का जूठा आरोप लगा है, परंतु सारे सबूत उसके खिलाफ होने के कारण अब उसे सारा पैसा भरना पड़ेगा. वह एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण था, उसका गुजारा भी बहुत मुश्किल से ही हो पाता था, अतः उसने श्रीहरि से कहा की अगर आज वह पैसा देने में नाकामयाब रहा तो वह आत्मदाह कर लेगा. हमारे श्रीहरि तो कहलाते ही हैं भक्तवत्सल भगवान तो भला वो अपने भक्त का अहित कैसे होने दे सकते थे.
परंतु भगवान थे श्रीहीन,
परंतु तभी भगवान को याद आया की अभी तो वह श्रीहीन हैं अर्थात लक्ष्मी जी तो नाराज़ हो उनसे दूर चली गई हैं तो वह पैसे कहा से लाएंगे, यह सोच कर भगवान चिन्तित हो गये परंतु अब भक्त के प्राणो की रक्षा हेतु तो कुछ करना ही था सो वह नीचे पृथ्वीलोक पर आ गए.
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जब भगवान ने एक सेठ से लिया उधार,
नीचे आकर भगवान ने एक व्यापारी का रूप धरा और तिरुमला के एक सेठ से उधार लेकर वह पैसा अपने भक्त को दे दिया. भक्त ने तो वह पैसे देकर अपने ऊपर लगे इल्जाम से मुक्ति पा ली परंतु भगवान उस सेठ के उधार तले दब गए. तब भगवान तिरुमाला की ही पहाडीयों में रहने लगे और सेठ को यह वचन दिया की उनके पैसे चुकाई बगैर भगवान वहां से नहीं जाएंगे, तो माना जाता है की उस सेठ का ऋण उतारने के लिए भक्त भगवान को चढावा चढ़ाते हैं ताकि अपने प्रभु को वह जल्दी से जल्दी ऋण कर सके और ऐसी मान्यता है की जिस दिन उस सेठ से लिया हुआ सारा पैसा चूकता हो जाएगा, भगवान वापस से अपने बैकुण्ठ वापस चलें जाएंगे…